नीलकंठ महादेव मंदिर, विषपान के बाद जंहा महादेव समाधि लगाकर बैठे, यहां मनोकामना पूर्ति के लिए मंदिर परिसर में बांधते है धागा !

नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) की नक़्क़ाशी देखते ही बनती है।
नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) की नक़्क़ाशी देखते ही बनती है।

देवभूमि उत्तराखंड (Devbhoomi Uttarakhand) में स्थित ऋषिकेश (Rishikesh) में कई पावन तीर्थ स्थल हैं। हर तीर्थ स्थल का अपना अलग ही महत्व है और इतिहास भी। ऋषिकेश में स्वर्गाश्रम से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) जिसकी हिन्दुओं में काफी मान्यता है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश (Neelkanth Mahadev Temple, Rishikesh) से लगभग 5500 फीट की ऊँचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।

मुनी की रेती से नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) सड़क मार्ग से 50 किलोमीटर और नाव द्वारा गंगा पार करने पर 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ हजारों की संख्या में लोग घूमने और महादेव का आशीर्वाद लेने आते है। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव (God Shiv) को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।

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नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) के इतिहास की बात की जाए तो यहाँ का इतिहास काफी रोचकता भरा है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था। उन्होंने अपनी शक्ति के प्रभाव से उस विष को अपने कंठ तक ही सीमित रखा और गले से नीचे नहीं जाने दिया। इसीलिए उन्हें नीलकंठ महादेव कहा जाता है। विष ग्रहण करने के बाद वह ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां उन्हें शीतल वायु मिले। घूमते घूमते वह मणिकूट पर्वत पहुंचे और वहां उन्हें वह शीतलता मिली।

मान्यता है कि इसी स्थान पर शिव समाधि लगा कर बैठे थे, इसीलिए इस स्थान को श्री नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) के रूप में जाना जाता है।

नीलकंठ महादेव मंदिर (Neelkanth Mahadev Temple) की नक़्क़ाशी देखते ही बनती है। अत्यन्त मनोहारी मंदिर शिखर के तल पर समुद्र मंथन के दृश्य को चित्रित किया गया है और गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विष पीते हुए भी दिखलाया गया है। सामने की पहाड़ी पर शिव की पत्नी, पार्वती जी का मंदिर है। यहां आने वाले सभी भक्तगण भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाते हैं और साथ ही साथ अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मंदिर परिसर में धागा बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर वे धागा खोलने आते हैं।

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(Disclaimer: इस स्टोरी (लेख) में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं। यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। thenewsworld24.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)

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