जयपुर (Jaipur) से करीब 45 किलोमीटर दूर चौमूं- अजीतगढ़ मार्ग पर स्थित है महार कलां (Mahar Kalan) नाम का एक छोटा सा गांव,जहां स्थित है हिन्दुओं का पवित्र मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple) । कई धरोहरों व घटनाओं को समेटे यह गाँव ऐतिहासिक दृस्टि से काफी महत्वपूर्ण है। गाँव में खंडरनुमा इमारते इसकी प्राचीनता का जीता जागता सबूत है। यहाँ एक प्राचीन कालीन किला (Fort) भी है जो यह दर्शाता है कि यहाँ किसी जमाने में राजा महाराजाओं का वजूद रहा होगा।
इसी गाँव से पश्चिम की ओर अरावली की सुरम्य पहाड़ी की तलहटी पर स्थित देवो के देव महादेव का पवित्र मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple) धाम। यहाँ प्रतिवर्ष सावन (Saavan) व भादवे के मास के अलावा महाशिवरात्रि (Mahashivratri) को लाखों की संख्या में लोग पहुंचते है। यहाँ से कावड़िए कावड़ भी लेकर जाते है। इस लेख में हम आपको बताएंगे इस स्थान से जुड़ी कुछ बातें…
जाने क्या है मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple) का इतिहास
मंदिर के महंत महेश्वर दास ने बताया कि किवदंती है कि यहां कभी विशाल जंगल था। गायों का एक झुंड चरने आया करता था। उन्हीं गायों में से एक गाय प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर अपने दूध की धार एकसिला पर प्रवाहित करती थी। प्रदोष काल सोमवार को इस स्थान से पहाड़ के शीला को तोड़कर शिवलिंग स्वत: ही प्रकट हो गया। तभी से यहां मालेश्वरनाथ महादेव (Maleshwarnath Mahadev) की पूजा अर्चना की जाने लगी। अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple) काफी प्राचीन है। मान्यता है कि यह ग्राम पहले महाबली राजा सहस्रबाहु की नगरी महेश पुरी (महिषमति नगरी) थी। शिव पुराण में इसका उल्लेख है। जिसे परशुराम जी की तपोस्थली भी कहा जाता है।
सूर्य की गति के अनुसार घूमता है शिवलिंग
मंदिर के महंत महेश्वर दास ने बताया कि यहां स्थापित शिवलिंग (Shivling) सूर्य की गति के अनुसार घूमता है। सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन होने के अनुरूप शिवलिंग भी उत्तरायण और दक्षिणायन की तरफ झुक जाता है। मंदिर के मंडप के स्तंभों पर अंकित 1101 ईसवी के शिलालेख हैं। मंदिर के गर्भ गृह में 2 फीट का शिवलिंग पहाड़ के चट्टान से बाहर निकला हुआ है। प्राचीनतम ग्रंथों के अनुसार करोड़ शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से जो फल मिलता है। इससे करोड़ों गुना अधिक फल मालेश्वरनाथ महादेव (Maleshwarnath Mahadev) की पूजा अर्चना करने से सहज ही प्राप्त हो जाता है।
मुगल सेनाओं ने मूर्ति को खंडित करने का किया था प्रयास
मंदिर के महंत महेश्वर दास ने बताया कि मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple) के पास ही विष्णु भगवान का मंदिर है जिसको सं 1500 में औरंगजेब की सेनाओं ने खंडित कर दिया था। इस मंदिर की खंडित मूर्ति आज भी यहां मौजूद है। मुगल सेनाओं ने विष्णु की मूर्ति को तो खंडित कर दिया लेकिन शिवलिंग को खंडित करने का प्रयास असफल रहा। जैसे ही मुग़ल सैनिकों ने गर्भ गृह में शिवलिंग को नष्ट करने के लिए प्रहार किए तो समीप के पहाड़ों से मधुमक्खियों ने मुगल सेना पर हमला बोल दिया जिससे सैनिकों को यहां से भागना पड़ा । शिवलिंग पर प्रहार करने के चिन्ह आज भी बने हुए हैं।
पिकनिक के लिए भी है अच्छा स्थान
बारिश के मौसम में पहाड़ों पर हरियाली होने व झरनों के बहने से यह स्थान अत्यंत रमणीय हो जाता है। सावन मास में तो यहाँ लाखो की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव (Lord Shiva) के जलाभिषेक व दर्शनों के लिए पहुंचते है। बारिश में यहाँ के प्राकृतिक दृश्य नैसर्गिक सुख की अनुभूति का आनंद देते है। बहते प्राकृतिक झरनों का आनंद लेने के लिए दूर दूर से लोग अपने परिवार के साथ पिकनिक (Picnic) तक मनाने के लिए यहां आते है।
कई फिल्मों की हो चुकी है यहां शूटिंग
सामोद व महारकलां गांव की प्राकृतिक सुंदरता के चलते यह स्थान पर्यटन स्थल के रूप में काफी प्रसिद्ध है। यह गाँव फिल्मो के लिए भी अच्छी लोकेशन रहा है। यहां न जाने कितनी ही फिल्मो की शूटिंग हो चुकी है जिनमे ‘दाता’,’बीस साल बाद’, ‘बॅटवारा (Batwara)’, ‘करण अर्जुन (Karan Arjun)’, ‘कोयला’, ‘लोहा’ ,’युगांधर’ , ‘सोल्जर (Soldier)’ ,’इतिहास’, ‘मेहँदी’, ‘मैदाने ए जंग’ जैसी फिल्मे शामिल है।
कैसे पहुंचे मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple)?
सावन मास में मालेश्वरनाथ मंदिर (Maleshwarnath Temple) में सबसे ज्यादा लोग पहुंचते है। यदि आप सड़क मार्ग से दिल्ली की तरफ से आ रहे है तो आपको शाहपुरा – अजीतगढ़ होते हुए आना होगा। आप जयपुर से आ रहे है तो आपको चौमूं होते हुए आना होगा। यदि आप रेलमार्ग से आने की सोच रहे है तो आपको जयपुर जंक्शन से चौमूं – सामोद रेलवे स्टेशन (Chomu- Samod Railway Station) आना होगा। चौमूं से आप रोडवेज, शेयर टैक्सी या प्राइवेट टैक्सी से पहुंच सकते हो। चौमूं से महारकलां की दूरी 13 किलोमीटर के लगभग ही है।
महारकलां बस स्टैंड से मंदिर की दूरी एक किलोमीटर के लगभग ही है। आप यहाँ घूमने का प्रोग्राम बना रहे है तो ध्यान रहे यहां रात में रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है। नाईट स्टे के लिए आपको सामोद व चौमूं में ही होटल्स में रुकना होगा। यदि आप कोई गोठ व सवामणी करने आ रहे है तो आपको यहां पूरी सुविधा निर्धारित शुल्क के साथ मिल जायगी। यहाँ भी कोरोना गाइड लाइन का पूरी तरह से पालन किया जा रहा है।
डिस्क्लेमर: द न्यूज़ वर्ल्ड 24 इस खबर की कोई पुष्टि नहीं करता है, यह खबर सिर्फ पुरानी मान्यताओं पर आधारित है।
जय भोलेनाथ
अच्छी कवरेज है
जय भोलेनाथ
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