
जयपुर। भाजपा (BJP) प्रदेश मुख्यालय पर भाजपा उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि राजस्थान में बिजली संकट (Power Crisis) से किसानों को दिन में तारे दिखाई दे रहे है, तारों से करंट गायब है, अब 23 हजार 309 मेगावाट बिजली की घोषणा महामहिम राज्यपाल के भाषण में पैरा 160 के अंदर राज्य सरकार ने की, उसमें तापीय विद्युत घरों की 8 हजार 597.35 मेगावाट विद्युत उपलब्धता शामिल है, जिनमें औसतन 3.40 पैसे प्रति यूनिट विद्युत उत्पादित होती है, पिछले तीन माह की अधिकतम विद्युत खपत 13 हजार 600 मेगावाट होने के बाद भी राज्य के शहरी क्षेत्र में एक घंटे से तीन घंटे तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 7 घंटे से 9 घंटे की घोषित/अघोषित बिजली कटौती (Power Crisis) कर राजस्थान को अंधकार में डूबा दिया है, तकनीकी व रखरखाव के नाम पर जानबुझकर निजी विद्युत उत्पादनकर्ताओं से महंगी बिजली खरीदने का षड़यंत्र राज्य सरकार एवं ऊर्जा विभाग में उच्च पदस्थ अधिकारी कर रहे हैं।
राठौड़ ने कहा कि, आंकड़ों के अनुसार 2019-20 में राज्य के बाहर की निजी विद्युत उत्पादन कंपनियों से 12,470 करोड़ तथा वर्ष 2020-21 में 13 हजार 793 करोड़ रुपये की महंगी बिजली 5 रु 70 पैसे से लेकर 17 रु तक खरीदकर, राजस्थान (Rajasthan) की 1 करोड़ 52 लाख उपभोक्ताओं पर एक ओर अनावश्यक बोझ डाला वहीं दूसरी ओर महंगी बिजली खरीदने में जमकर चांदी कूटी गई।


राज्य सरकार द्वारा 10 हजार मेगावाट के एमओयू सोलर एनर्जी व विंड एनर्जी जनरेट करने के लिए किये हैं, जिनमें से 7 हजार 700 मेगावाट का बिजली उत्पादन भी प्रारम्भ हो गया, इसमें कोयला खरीद निजी विदयुत उत्पादन कंपनी से महंगी विदयुत खरीद में संस्थागत भ्रष्टाचार होना संभव नहीं है, इसलिए राज्य सरकार जानबूझकर उत्पादन को प्रोत्साहित नहीं कर रही है।
राठौड़ ने बताया कि, राजस्थान में सोलर एनर्जी का जो उत्पादन चल रहा है, उसका अन्य राज्यों में भी प्रयोग किय़ा जा रहा है, परन्तु डिस्कॉम ने घरों में रुफटॉप सोल प्लांट लगाये जाने की नीति को हतोत्साहित किया है। आदेश दिनांक 14 सितंबर 2021 द्वारा 500 किलोवाट तक रुफटॉप में सोलर प्लांट लगाने की अनुमति दी है। परन्तु डिस्कॉम द्वारा अपनी हठधर्मिता के कारण राजस्थान विद्युत नियामक आयोग के आदेश की पालना नहीं की जा रही है।
कोयले के संकट का कारण राज्य सरकार की स्वयं की गलत नीतियां है। एक ओर आज भी कोल इंडिया लिमिटेड सहित विभिन्न कोयला उत्पादन कंपनियों का कोयले का 11 हजार 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि बकाया है। जिसके कारण कोयला उत्पादन कंपनियों ने राज्य के तापीय विद्युत संयंत्रों को कोयला देना बंद कर दिया है।
अगर राज्य सरकार ने शीघ्र ही कोयला उत्पादन कंपनियों से कोयला लेकर स्टॉक नहीं किया तो जुलाई के बाद चूंकि कोयला खानों में बरसात का पानी भर जाने के कारण कोयला उपलब्ध नहीं होने से राज्य सरकार के सभी थर्मल पावर प्रोजेक्ट बंद हो जायेंगे।
यही नहीं विद्युत वितरण कंपनियों का विद्युत उत्पादन निगम में 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी की राशि बकाया है जिसके कारण विद्युत वितरण कंपनियों की स्थिति आर्थिक आपातकाल जैसी हो रही है।
राज्य सरकार की ओर से मैसर्स राजवेस्ट पावर के साथ किए गए विभिन्न अनुबंधों के बाद कपुडी व जालीपा की खानों से लिग्नाइट का उत्खनन कर 1080 मेगावाट विद्युत उत्पादन करने का अनुबंध किया गया था, जिसके लिए राज्य सरकार को इन खानों से उत्खनन संबंधी आज्ञा केन्द्र सरकार से प्राप्त करनी थी जिसमें राज्य सरकार विफल रही।
जिस पर इसी 4 अप्रैल को राज्य सरकार द्वारा राजवेस्ट कंपनी द्वारा किये जा रहे उत्खनन को बंद करने तथा 15 दिन में लिग्नाइट की वैकल्पिक व्यवस्था करने के निर्देश दिये गये हैं। जिसके परिणामस्वरूप 1080 मेगावाट उत्पादन बंद होना कोढ़ में खाज का काम कर रहा है।
राठौड़ ने कहा कि,विशेष उल्लेखनीय है कि इस संबंध में उत्खनन में बाड़मेर लिग्नाइट माइंस कंपनी में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकारी उपक्रम राजस्थान स्टेट माइन्स एंड मिनरल्स की है तथा 49 प्रतिशत निजी विद्युत उत्पादनकर्ता राजवेस्ट की है तथा बाड़मेर लिग्नाइट माइंस कंपनी के चेयरमेन राज्य के प्रमुख शासन सचिव, खान सुबोध कांत है।
विडम्बना है कि 7 जनवरी 2022 को प्रदेश में विद्युत उपलब्धता के लिए बनी उच्च स्तरीय चेयरमेन डिस्कॉम/ऊर्जा सचिव की अध्यक्षता में एनर्जी एसेसमेंट कमेटी की बैठक में स्वीकार किया गया था कि वर्ष 2022-23 में प्रदेश में विद्युत की उपलब्धता की कोई कमी नहीं रहेगी और प्रदेश में 8 हजार 972 मिलियन यूनिट बिजली सरपल्स रहेगी।
विनियामक आयोग के समक्ष प्रस्तुत दूसरी याचिका संख्या 1923/21 में डिस्कॉम द्वारा 252 मेगावाट के पीपीए इस आधार पर निरस्त कराये गये कि उनके पास विद्युत की उपलब्धता आवश्यकता से अधिक है और यदि भविष्य में आवश्यकता होती है तो बाजार से 3 रु प्रति यूनिट के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि राज्य में विद्युत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है।