बेटा- बेटी एक समान: दलित समाज की बेटियों की घोड़ी पर निकली बिन्दोरी

एक दलित परिवार ने अपनी दो बेटियों की घोड़ी पर बैठा कर बिन्दोरी (Bindori) निकाली।
एक दलित परिवार ने अपनी दो बेटियों की घोड़ी पर बैठा कर बिन्दोरी (Bindori) निकाली।

जयपुर । सरकार द्वारा बेटियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से चलाई जा रही अनेक योजनाओं व जन जागरूकता की मुहिम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, बेटियां नहीं होगी तो बहू कहां से लाओगे, बेटे बेटी एक समान जैसे स्लोगनों की सार्थकता अब आम जन के जीवन में उतरती नजर आ रही है। लोग अब अपनी बेटियों को भी बेटों के बराबर मान रहे हैं। वे सभी सुविधाएं जो बेटों को उपलब्ध करवाई जाती है वही अपनी बेटियों को भी रहे हैं। एक दलित परिवार ने अपनी दो बेटियों की घोड़ी पर बैठा कर बिन्दोरी (Bindori) निकाली।

बेटे बेटियों की समानता का एक उदाहरण जयपुर जिले के चौमूं तहसील के ग्राम टांकरड़ा में देखने को मिला जहां एक दलित परिवार ने अपनी दो बेटियों की घोड़ी पर बैठा कर बिन्दोरी (Bindori) निकाली। शहर के निकटवर्ती ग्राम टांकरडा में नारायण लाल नुवाल ने अपनी दो सुपुत्रीयों को घोड़ी पर बैठाकर बिन्दोरी निकाल कर बेटा-बेटी एक समान होने का संदेश दिया ।

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रामगोपाल नुवाल ने बताया कि बेटीयों के पिता महेंद्र कुमार नुवाल द्वारा अपनी दोनों पुत्री अनीता व सुनिता को घोड़ी पर बैठाकर डीजे के साथ आसपास के क्षेत्र में बिन्दोरी निकाली। इससे पूर्व दोनों पुत्रियों को साफा व शेरवानी आदि पुरुष पोशाक पहनाकर दूल्हे के रूप में सजाया गया। इसके बाद गाँव की मुख्य मार्गो से होती हुए बिन्दोरी (Bindori) निकाली गई। बिन्दोरी में परिवार की महिलाओं व बच्चों ने डीजे की धुनों पर खूब डांस किया।

नुवाल परिवार का कहना है कि समाज में व्याप्त भेदभाव को मिटाकर बेटी को भी बेटे के समान दर्जा देकर समाज में अनूठी पहल कायम की है, जिसकी सभी क्षेत्रवासियों ने सराहना की। दुल्हन बनी नुवाल परिवार की अनीता व सुनिता कहती है कि माता-पिता ने हमें लड़कों की तरह पाला है तथा लड़के लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं समझा है।

बेटियों की घोड़ी पर बिन्दोरी (Bindori) पूरे गाँव में ग्रामीणों में चर्चा का विषय बना हुआ है। नुवाल परिवार द्वारा बेटी बेटा एक सामान का सन्देश निश्चित रूप से बेटियों के प्रति मानवीय सोच को बदलने में मील का पत्थर साबित होगा।

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