
- संवाद एवं विचार विमर्श लोकतंत्र की सबसे अभिन्न प्रक्रिया.
- तीन कृषि कानूनों को वापस लेकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी कानून बनाने की मांग.
- किसान आंदोलन (Farmer Protest) के पक्ष में तख्तियां, बैनर एवं हाथों पर काली पट्टी बांधकर किया प्रदर्शन.
जयपुर। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन (Farmer Protest) को राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भी हाथों में तख्तियां लेकर प्रदर्शन करके अपना समर्थन प्रदान किया है। विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सी.बी.यादव की पहल पर सरकार के तीन कृषि विधेयकों के विरोध में आयोजित धरने प्रदर्शन में राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भाग लिया एवं एक स्वर में किसान आंदोलन (Farmer Protest) के प्रति सरकार के दमनकारी रवैया की कड़े शब्दों में आलोचना की एवं सरकार से खुले मन से किसानों से वार्ता करके किसानों के हित में उचित फैसला लेने की मांग की।
संवाद एवं विचार विमर्श लोकतंत्र की सबसे अभिन्न प्रक्रिया:
डॉ.सी.बी.यादव ने बताया कि संवाद एवं विचार विमर्श लोकतंत्र की सबसे अभिन्न प्रक्रिया है। इन तीन कृषि कानूनों को लागू करने में सरकार ने ना तो किसी किसान संगठन से संवाद किया, तथा न हीं संसद में इन पर बहस की। विपक्ष की संसद की सेलेक्ट कमेटी को भेजे जाने के प्रस्ताव को भी सरकार ने खारिज कर दिया। जिसका परिणाम आज पूरे देश में किसानों के प्रदर्शन को उग्र आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है।


तीन कृषि कानूनों को वापस लेकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी कानून बनाने की मांग:
राजनीतिक विज्ञान के शिक्षक डॉ. लादूराम चौधरी बताया कि यह कानून वस्तुतः अप्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट के नियंत्रण को स्थापित करने की दृष्टि से बनाए गए हैं। लोक प्रशासन विभाग के विभागाध्यक्ष ओम महला ने संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना संकट के दौरान जहां सरकार से किसान मानवीय संवेदनाओं के तहत आर्थिक सहायता की अपेक्षा कर रहा था । वहीं सरकार ने इस संकट में भी कॉर्पोरेट के हितों को पूरा करने के लिए यह तीन कृषि कानूनों को लागू करने का कार्य किया है। जिसका पूरा विश्व विद्यालय का शिक्षक समुदाय निंदा करता है और सरकार से इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी कानून बनाने की मांग करता है।
किसान आंदोलन (Farmer Protest) के पक्ष में तख्तियां, बैनर एवं हाथों पर काली पट्टी बांधकर किया प्रदर्शन:
हिंदी विभाग के शिक्षक डॉ. विशाल विक्रम ने बताया कि सरकार इन तीन कृषि कानूनों को कृषि सुधारों के संदर्भ में ऐतिहासिक करार दे रही है लेकिन यह सोचने वाली बात है कि बिना किसानों को विश्वास में लिए हुए कोई भी कृषि सुधार कैसे लागू होगा। सरकार को किसानों के प्रति संवेदनशील रवैया रखते हुए खुले दिमाग से उनसे बात करनी चाहिए एवं उनकी समस्याओं पर शीघ्र अति शीघ्र उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
कृषि क्षेत्र में कोई भी सुधार केवल किसानों के विश्वास के रास्ते ही संभव हो सकता है। प्रदर्शनकारी शिक्षक किसान आंदोलन (Farmer Protest) के पक्ष में विभिन्न प्रकार के स्लोगन लिखे हुए तख्तियां बैनर लेकर एवं हाथों पर काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन किया। कई छात्रों ने शिक्षकों के इस प्रदर्शन को नारेबाजी करके समर्थन प्रदान किया।
प्रदर्शन में राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. मनीष सिनसिनवार, डॉ. मुकेश वर्मा, डॉ. कैलाश , डॉ. मुकेश वर्मा, डॉ. डी. सुधीर, डॉ. इंदु सांखला, डॉ. आर.डी. चौधरी, डॉ. अखिल कालेर, डॉ. वीरेंद्र यादव, डॉ. सरिता चौधरी, डॉ. निमाली सिंह, डॉ. एकता मीना, डॉ. लक्ष्मी परेवा, डॉ. मीना रानी, डॉ.आसु राम , डॉ. पूराराम, डॉ. संजीव, डॉ. प्रदीप कुमार सहित कई शिक्षकों ने भाग लिया ।
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