होली पर अनोखी शवयात्रा: इस शहर में होली के बाद निकलती है अनोखी शवयात्रा, जानकर हो जाएंगे आप हैरान

ऐसी ही एक परम्परा जिले के चौमूं शहर में भी है। जो होली दहन (Holi Dahan) के तुरंत बाद निभाई जाती है।
ऐसी ही एक परम्परा जिले के चौमूं शहर में भी है। जो होली दहन (Holi Dahan) के तुरंत बाद निभाई जाती है।

जयपुर। होली (Holi) का पर्व हर राज्य में अलग अलग परम्पराओं व रीति रिवाज के साथ मनाया जाता है। यहां हर कदम कदम पर रीति रिवाज व बोलिया बदलती रहती है। इसी लिए भारत देश को विभिन्नता में एकता का देश कहा गया है। यहाँ के हर राज्य के हर जिले के त्याहारों व पर्वो में भिन्नता जरूर मिलती है। चाहे वो व्यंजनों व वेशभूषा की हो या फिर त्योहार मनाने के तरीकों को की।

कुछ इलाकों में होली की परम्पराएँ ऐसी है जिनके बारे सुनकर हर कोई हैरान रह जाता है। ऐसी ही एक परम्परा जिले के चौमूं शहर में भी है। जो होली दहन (Holi Dahan) के तुरंत बाद निभाई जाती है।

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चौमूं के पेमली बोर ही नहीं यहां से निकलने वाली ‘बोरो जी’ की शवयात्रा (Funeral Procession) भी खूब प्रसिद्ध है। इस शव यात्रा में 3 से 4 हजार लोग शामिल होते है। नगर के परकोटे के बीच पुरोहितों का मोहल्ला है जो नगर की बसावट के साथ ही बसाया गया था और यही से जुड़ा है ‘बोरो जी’ की शवयात्रा से जुड़ा इतिहास । हिन्दू धर्म (Hinduism) में शवयात्राए सामान्यतया सूर्यास्त के बाद नहीं निकाली जाती है लेकिन इस शव यात्रा की ख़ास बात ये है की यह होली (Holi) दहन व सूर्यास्त के बाद ही निकलती है।

‘बोरो जी’ का आज भी इलाके में है प्रचलन:

धुलण्डी का पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे के रंग गुलाल लगाकर इस पर्व को मनाते है। जिस प्रकार 1 अप्रैल को लोग एक दूसरे से मजाक कर ‘अप्रैल फूल’ कहते है उसी प्रकार धुलण्डी के दिन रंग लगाने के बाद यहाँ ‘बोरोजी’ कहने का प्रचलन है। धुलंडी के दिन “बोरोजी” शब्द यहाँ की हर गली , मोहल्ले में बच्चों से लेकर बड़ो की जुबान पर रहता है।

करीब 70 साल से निकलती आ रही है ये शवयात्रा :

‘बोरो जी’ की शव यात्रा पुरोहितो के मोहल्ले में तैयार होती है। इस दौरान पुराने कपडे और घास फूंस से एक अर्थी तैयार की जाती है और उसी प्रकार की रस्मे निभाई जाती जिस प्रकार एक इंसान की मौत के बाद। इस शव यात्रा को निकलते 70 साल के करीब समय हो गया। जिन्होंने इस परम्परा को शुरू किया वो आज इस दुनिया में नहीं है। शुरुआत एक ने की फिर समय के साथ लोग जुड़ते गए और परम्परा आगे बढ़ती गई। स्थानीय लोगो ने कई लोगो के नाम बताए जिन्होंने इसकी शुरुआत की।

पुरोहितो के मोहल्ले से तैयार होकर यहाँ तक जाती है शवयात्रा:

शव यात्रा पुरोहितो के मोहल्ले से शुरू होकर चौपड़ जाती है और फिर चौपड़ से बस स्टैंड तक जाती है। बस स्टैंड जाकर यात्रा विसर्जित हो जाती है। लेकिन इस दौरान यात्रा में हजारों की संख्या में लोग तरह तरह के नारे लगाते चलते है।

आखिर यह ‘बोरो जी’ था कौन और इसकी शव यात्रा निकालने के पीछे क्या कारण था ? इसके लिए आप नीचे दिए गए वीडियो के लिंक को खोलकर पूरी कहानी समझ सकोगे…

(Disclaimer: इस स्टोरी (लेख) में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं। यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। thenewsworld24 .com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)

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