Raksha Bandhan: रक्षा बंधन मनाने के पीछे की पौराणिक कथा

Raksha Bandhan: रक्षा बंधन मनाने के पीछे की पौराणिक कथा
Raksha Bandhan: रक्षा बंधन मनाने के पीछे की पौराणिक कथा

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) भाई बहन के पवित्र रिश्ते के बीच मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों को जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का पर्व श्रावण पूर्णिमा के लिए मनाया जाता है।

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का पर्व दो शब्दों के मिलने से बना हुआ है, “रक्षा” और “बंधन“। संस्कृत भाषा के अनुसार, इस पर्व का मतलब होता है कि “एक ऐसा बंधन जो की रक्षा प्रदान करता हो”। यहाँ पर “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना होता है और “बंधन” का मतलब होता है एक गांठ, एक डोर जो की रक्षा प्रदान करे।

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ये दोनों ही शब्द मिलकर एक पवित्र रिश्ते को जताते है। यह त्यौहार खुशी प्रदान करने वाला होता है वहीँ ये भाइयों को ये याद दिलाता है की उन्हें अपने बहनों की हमेशा रक्षा करनी है।

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का महत्व सच में सबसे अलग होता है। ऐसा पवित्र पर्व आपको दुनिया में कहीं और देखने को न मिले। ये परंपरा भारत में काफी प्राचीन समय से प्रचलित है। आज हम आपको रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है, कुछ पौराणिक कथाओं व मित्थको द्वारा बताने की कोशिश कर रहे है। वैसे तो रक्षाबंधन से जुडी अनेकों कथाएं प्रचलित है।

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) क्यों मनाया जाता है :

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) असल में इसलिए मनाया जाता है क्यूंकि ये एक बहन का भाई के प्रति प्यार और एक भाई का अपने बहन के प्रति कर्तव्य को दर्शाता है। वहीँ इसे केवल सगे भाई बहन ही नहीं बल्कि कोई भी स्त्री और पुरुष जो की इस पर्व की मर्यादा को समझते है वो इसका पालन कर सकते हैं।

इस मौके पर, एक बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधती हैऔर भगवान से मांगती है कि उसका भाई हमेशा खुश रहे और स्वस्थ रहे। वहीँ भाई भी अपने बहन को बदले में उपहार प्रदान करता है और ये प्रतिज्ञा करता है कि कोई भी विपत्ति आ जाये वो अपनी बहन की हमेशा रक्षा करेगा।

कृष्ण और द्रोपदी की कहानी :

अपनी प्रजा की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण (Lord Krishna) ने अपने सुदर्शन चक्र से दुष्ट राजा शिशुपाल को मारना पड़ा। इस युद्ध के दौरान कृष्ण जी की अंगूठे में गहरी चोट आई थी। जिसे देखकर द्रोपदी ने अपने वस्त्र का उपयोग कर पट्टी बांधकर खून बहने से रोक दिया था। भगवान कृष्ण को द्रोपदी के इस कार्य से काफी प्रसन्नता हुई और उन्होंने द्रोपदी के साथ सदैव एक भाई का रिश्ता निभाया। भगवान कृष्ण ने द्रोपदी से ये वादा भी किया की समय आने पर वो उनकी जरुर मदद करेंगे।

बहुत वर्षों बाद जब द्रोपदी को कुरु सभा में जुए के खेल में हारना पड़ा तब कौरवों के राजकुमार दुशासन ने द्रोपदी का चीर हरण करने लगा तो भगवान कृष्ण ने द्रोपदी की रक्षा कर उनकी लाज बचायी थी।

राजा बलि और माँ लक्ष्मी :

भगवत पुराण और विष्णु पुराण में ऐसा बताया गया है कि बलि नाम के राजा ने भगवान विष्णु (Lord Vishnu) से उनके महल में रहने का आग्रह किया। भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गए और राजा बलि के साथ रहने लगे। मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया, उन्होंने राजा बलि को रक्षा धागा बांधकर भाई बना लिया। राजा ने लक्ष्मी जी से कहा कि आप मनचाहा उपहार मांगें।

इस पर मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को अपने वचन से मुक्त कर दें और भगवान विष्णु को माता के साथ जानें दें। इस पर बलि ने कहा कि मैंने आपको अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया है। इसलिए आपने जो भी इच्छा व्यक्त की है, उसे मैं जरूर पूरी करूंगा। राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपनी वचन बंधन से मुक्त कर दिया और उन्हें मां लक्ष्मी के साथ जाने दिया।

रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ :

रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी का कुछ अलग ही महत्व है। ये उस समय की बात है जब राजपूतों को मुस्लमान राजाओं से युद्ध करना पड़ रहा था। उस समय चित्तौड़ की रानी कर्णावती हुआ करती थी। वो एक विधवा रानी थी।

गुजरात के सुल्तान बहादुर साह ने उनके राज्य पर हमला कर दिया। ऐसे में रानी अपने राज्य को बचा सकने में असमर्थ होने लगी। इस पर उन्होंने एक राखी सम्राट हुमायूँ को अपनी रक्षा करने के लिए एक राखी भेजी। हुमायूँ ने भी राखी का मान रखते हुए अपनी बहन की रक्षा हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी को चित्तौड़ भेज दिया। जिसके बाद बहादुर साह की सेना को पीछे हटना पड़ा।

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