
बड़ी होली से एक दिन पहले छोटी होली मनाई जाती है। छोटी होली (Holi 2021) वाले दिन होलिका दहन (Holika Dahan) करने की परंपरा है। इस बार ये पर्व 28 मार्च को मनाया जाएगा। शाम के समय प्रदोष काल में होली (Holi 2021) जलाई जाएगी। इसके बाद अगले दिन यानी 29 मार्च को रंगवाली होली (Holi 2021) खेली जाएगी। जिसे धुलेंडी नाम से भी जाना जाता है।
होलिका दहन के दिन सुख समृद्धि और पारिवारिक उन्नति के लिए श्रद्धालु होलिका की पूजा कर करते हैं। कहते हैं होलिका मन की बुरी नहीं थी लेकिन अपने भाई हिरण्यकश्यप के प्रभाव की वजह से प्रहलाद को चिता पर लेकर बैठ गई थी ताकि प्रहलाद अग्नि में जल कर परलोक चला जाए । लेकिन दैवयोग से होलिका स्वयं जल कर मृत्यु को प्राप्त हो गई। ब्रह्माजी की कृपा से होलिका को भी पूजनीय स्थान प्राप्त हो गया और होलिका दहन के लिए इकट्ठी की गई लकड़ियों के बीच होलिका, भगवान विष्णु और अग्नि देव की पूजा की जाती है।


पूजा विधि:
होलिका दहन जिस स्थान पर करना है उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें। वहां सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें। इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें। आप चाहें तो गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं भी बना सकते हैं। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा करें।
पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली (Holi 2021) पर बनने वाले पकवान व नारियल रखें। साथ में नई फसलें भी रखी जाती हैं। जैसे चने की बालियां और गेहूं की बालियां। कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद सभी सामग्री होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें।
ये मंत्र पढ़ें- अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः । अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।। पूजन के पश्च्यात अर्घ्य अवश्य दें।
होलिका दहन (Holika Dahan) का शुभ मुहूर्त:-
पंडित गुरु ज्योतिष आचार्य राजेश वशिष्ठ गोल्ड मेडलिस्ट के अनुसार होलिका दहन (Holika Dahan) फागुन शुक्ला की प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा को भद्रा रहित करना शास्त्रोक्त बताया गया है । इस वर्ष फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा रविवार दिनांक 28 मार्च 2021 को है तथा इस दिन भद्रा दोपहर बाद 1:52 तक है जिससे साईं काल में पूर्णिमा भद्रा से मुक्त है।
अतः दिनांक 28 मार्च रविवार को होली (Holi 2021) दहन गोद रूबेला में सूर्यास्त बाद करना श्रेष्ठ है जिसका समय जयपुर व कोटा में सायं काल 6:38 से 6:50 तक का रहेगा। जोधपुर में सायं काल 6:50 से 7:02 तक रहेगा। उदयपुर व श्रीगंगानगर में सांय काल 6:46 से 6:58 तक रहेगा। बीकानेर में सायं काल 6:48 से 7:00 बजे तक का रहेगा। अजमेर में सायं काल 6:42 से 6:54 तक रहेगा व दिल्ली में सायं काल 6:31 से 6:43 तक का रहेगा।
होलिका दहन शुभ मुहूर्त में करने की सलाह दी जाती है। भद्रा के समय में होलिका दहन नहीं किया जाता है। वहीं होलिका दहन के दिन शुभ योगों में से सर्वोत्तम योग सर्वार्थ सिद्धी योग भी लगा हुआ है।
होलिका दहन (Holika Dahan) कथा :
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर था। उसने कठिन तपस्या कर भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया कि वह किसी मनुष्य द्वारा नहीं मारा जा सकेगा, न पशु, न दिन- रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र और न किसी शस्त्र के प्रहार से। भगवान ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए इस वरदान के कारण वह अहंकारी बन गया था, वह खुद को भगवान समझने लगा था। वह चाहता था कि सब भगवान की पूजा ना कर उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर भी पाबंदी लगा दी थी।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्राद विष्णु जी का परम उपासक था। हिरण्यकश्यप अपने बेटे के द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने पर बेहद नाराज रहता था, ऐसे में उसने उसे मारने का फैसला लिया। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्जवलित आग में बैठ जाएं, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी। जब होलिका ने ऐसा किया तो प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई।
राजस्थान में नवविवाहित युवतियां होलिका दहन पर पूजा अर्चना कर दूसरे दिन यानी धुलेंडी से 16 दिन तक पूजे जाने वाले गणगौर (पार्वती के रूप) की पूजा शुरू करती हैं।
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