बरसाना में लाड़ली जी का मंदिर ही देखने लायक नहीं है, फाल्गुन माह में बरसाना की लट्ठमार होली भी देखने पहुंचते है देशी-विदेशी पर्यटक

बरसाना (Barsana) में लाड़ली जी का मंदिर ही देखने लायक नहीं है, फाल्गुन माह में बरसाना की लट्ठमार होली भी देखने पहुंचते है देशी-विदेशी पर्यटक।
बरसाना (Barsana) में लाड़ली जी का मंदिर ही देखने लायक नहीं है, फाल्गुन माह में बरसाना की लट्ठमार होली भी देखने पहुंचते है देशी-विदेशी पर्यटक।

बरसाना राधे रानी का महल (Barsana Radhe Rani’s Palace) : मथुरा (Mathura) शहर जो आगरा से लगभग 60 किमी और दिल्ली से 100 किमी दूर स्थित है। मथुरा, सात पवित्र शहरों (सप्त महापुरियों) में से एक और भारत के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है । यह आमतौर पर वृन्दावन (Vrindavan), गोवर्धन (Govardhan) और गोकुल (Gokul) के निकटवर्ती गांवों के साथ “ब्रज-भूमि” के रूप में जाना जाता है।

मथुरा के बरसाने में राधा रानी मन्दिर (Radha Rani Temple) प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो बरसाने के बीचों-बीच एक पहाड़ी है, जिस पर यह खूबसूरत मंदिर स्थित है। इस मंदिर को ‘बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर’ (Barsana Ki Ladli Ji Ka Mandir) और ‘राधारानी का महल’ (Radharani Ka Mahal) भी कहा जाता है।

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बरसाना (Barsana) में लाड़ली जी का मंदिर ही देखने लायक नहीं है, फाल्गुन माह में बरसाना की लट्ठमार होली भी देखने पहुंचते है देशी-विदेशी पर्यटक।

किंवदंतियों का मानना ​​है कि राधा रानी मंदिर 5000 साल पुराना है। राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य और सुंदर मंदिर का निर्माण राजा वीरसिंह ने 1675 ई. में करवाया था। बाद में स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरों को इस मंदिर में लगवाया गया। श्रीजी मंदिर, अपने मेहराबों, स्तंभों और लाल बलुआ पत्थर के साथ, मुगल-युग के निर्माण की भव्यता को दर्शाता है। इस मंदिर में हाथ की नक्काशी, आश्चर्यजनक मेहराब, गुंबद और आंतरिक दीवारों और छत पर सुंदर भित्ति चित्र हैं। राधा जी का यह प्राचीन मंदिर लाल और पीले पत्थर का बना है। इस मंदिर में जाने के लिए करीब 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

वृषभानु महाराज का महल, इस मंदिर की ओर जाने वाली सीढ़ियों के नीचे, वृषभानु महाराज, कीर्तिदा, श्रीदामा (राधा के भाई) और श्री राधिका की मूर्तियाँ हैं। इसके अलावा इस स्थान के पास ही ब्रह्मा का मंदिर भी मौजूद है। इसके अलावा पास में अष्ट सखी मंदिर भी है, जहां लोग राधा और उनकी मुख्य सखियों (सहेलियों) की पूजा करते हैं। यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर मौजूद है जहां से आप पूरे बरसाना के दृश्य का आनंद ले सकते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि यह मंदिर लोकप्रिय पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार कृष्ण के पिता नंद और राधा के पिता वृषभानु अच्छे मित्र थे। नंद गोकुल के प्रभारी थे, और वृषभानु रावल के प्रभारी थे। हालाँकि, मथुरा के राजा कंस के दुर्व्यवहारों से तंग आकर, वे दोनों और उनके लोग नंदगाँव (Nandgaon) और बरसाना (Barsana) में स्थानांतरित हो गए।

बरसाना (Barsana) में  राधा रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाडली महल के नाम से भी जाना जाता है।

नंद ने अपने स्थायी निवास के रूप में नंदीश्वर पहाड़ी को चुना, जबकि वृषभानु ने भानुगढ़ पहाड़ी को चुना, जो बाद में राधा का निवास स्थान बन गया। बरसाना और नंदगांव दोनों जुड़वां शहरों में नंदीश्वर और भानुगढ़ पहाड़ियों की चोटियों पर राधा और कृष्ण को समर्पित मध्यकालीन मंदिर हैं। जहां लोग नंदगांव मंदिर को नंद भवन कहते हैं, वहीं बरसाना मंदिर को राधा रानी मंदिर और श्रीजी मंदिर (Shreeji Temple) कहते हैं।

हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को यहां राधा रानी की विशेष पूजा होती, क्योंकि इस दिन को राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। स्कंद पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार इस दिन बरसाने की लाड़ली श्री राधा जी का जन्म हुआ था।

लाड़ली जी के मंदिर में राधाष्टमी (Radhashtami) का त्योहार (Festival) धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व जन्माष्टमी (Janmashtami​) के 15 दिन बाद भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है।

राधाजी को लड्डुओं और छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और उस भोग को सबसे पहले मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। इस अवसर पर राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाअष्टमी का त्योहार मनाते हैं ।

बरसाने (Barsana) की पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहां के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाना- नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है। जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। यहां भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुंदर मेला होता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।

जुलाई/अगस्त में राधाष्टमी पर देश भर से हजारों भक्त वृन्दावन आते हैं। फरवरी/मार्च में, बरसाना की प्रसिद्ध लट्ठमार होली (Lathmar Holi of Barsana) श्री राधा रानी और उनकी सहेलियों और श्री कृष्ण (Lord Krishana) के बीच प्रेम और शरारत के अनूठे बंधन का एक आकर्षक प्रतिनिधित्व करती है। इस दिन, लोग ब्रज होली गीत गाते हैं, और महिलाएं होली महोत्सव (Holi Mahotsav) को असामान्य लेकिन स्वादिष्ट अंदाज में मनाने के लिए पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं।

राधा रानी मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है। कोई भी व्यक्ति सुबह 5:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे और शाम 5:00 बजे से रात 9:00 बजे के बीच मंदिर में जा सकता है। रात में मंदिर पर की गई रंग बिरंगी रोशनी आकर्षण का प्रमुख केंद्र होती है।

बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर:

बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर

(Disclaimer: इस स्टोरी (लेख) में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं। यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। thenewsworld24.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)

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